मदर्स डे
मदर्स डे

मदर्स डे

हमने कभी अपनी मम्मी को

आई लव यू नहीं कहा

होश आने के बाद से
प्रेम के नाम पर
पारले जी के
दो बिस्किट्स मिले ; हमेशा।
प्रेमाधिक्य में मुस्कुरा कर

मेरी शर्त मान ली जाती थी
कि " टूटा हुआ नहीं लूंगी "

वैसे ये शर्त हमेशा मान ही ली गई

टूटा बिस्किट अपने मुंह में रख मां
मेरे भविष्य के लिए परेशान सी
हार कर साबुत वाले नन्हीं
हथेली पर धर दिया करती थी

पिता से शिकायती लहजे में
मेरे नखरे की बात भी
कह दिया करती थी...
और गुस्से के नाम पर

उनका तरेर कर देखना काफ़ी रहा

किशोर वय तक आते -आते
लप्पी - झप्पी वर्जित सी हो गई
पप्पी तो याद ही नहीं ,

कभी ली भी या नहीं...

वो मां नहीं ज्यों अंतरात्मा रही

आज जब शरीर से मौजूद नहीं

हर गलत बात पर अंतरात्मा मां की तरह

आंखें तरेर देखती है

डांटती भी वैसे ही है

और मैं ; वहीं उसी क्षण
जड़ हो जाती हूं

गलत का तिलिस्म भूल

पलट कर मां वाले रास्ते पर
लौट आती हूं
खाती हूं पारले जी के दो बिस्किट्स

और mothers day मनाती हूं।


दीप्ति सारस्वत प्रतिमा

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