अलका (भाग -6):- by Anant saraswat

ईश्वर ने साथ दिया और हम वापस शहर लौट आए । अब यह सब चलते चलते बहुत समय बीत चूके था ... एक दर्द , आज भी सीने में था । जिसे लेकर मैं जिए जा रहा था... अब पानी से ज्यादा,मैं शराब पीने लगा था,और पूरी तरह नशे में डूब गया,न दिन का पता न रात का ...लेकिन अलका ही थी ।




जो मुझे हर पल याद थी । जिसे मैं हर पल अपने पास ही महसूस करता था,मेरा परिवार मुझसे दूर हो गया था। अब मैं इस शहर का और यह शहर मेरा था... मैं जिस रास्ते पर चल रहा था, तो लोगों में मेरा सम्मान था, या डर ... इसे कहना मेरे लिए थोड़ा मुश्किल है... चौकी,थाने मैं आना जाना,





शराब पीना यह सब मेरे लिए आम बात हो गई थी... कभी कभी तो यही लगता था । साला मैं ही इस शहर का बाप है । मैंने इस धंधे को बहुत तेज़ी से जो आगे बढ़ाया,हालांकि कुछ लोग मुझसे नफ़रत भी करते थे, पी पी के अब हालत यह हो गई थी, बिना पिए रोटी पेट मैं नहीं जाती थी...पानी से ज्यादा मुझे शराब की जरूरत थी...







चारों तरफ रूपया ही रूपया दिखता था वैसे मेरी उम्र ज्यादा नहीं थी, और फ़िल्म के हीरो की तरह दिखता था मैं, इन दिनों कई लड़कियों संग मेरे संबंध थे, मैं पागल होता जा रहा था, और वैसे भी इंसान को चाहिए ही क्या,यही सब तो चाहिए,



लेकिन इतना सब होने के बाद भी, मेरी ज़िंदगी में सुकून नहीं था, मैं नदी के बहाव की तरह उस बहाव मै बहता चला जा रहा था,अलका की यादें मेरा पीछा नहीं छोड़ रही थी । मैं जब भी किसी लड़की के करीब जाता ,तो मुझे ऐसा लगता, जैसे अलका मेरे सामने है,और मैं रुक जाता था...








मैं समझ नहीं पा रहा था,यह सब मेरे साथ क्या हो रहा है, मुझे यही लगता था,शायद मैं किसी बीमारी का शिकार हो चुका हूं, अलका मेरी आंखों की रोशनी की तरह थी मुझे उसके सिवाय कुछ और दिखता ही नहीं था... क्योंकि वही तो थी,जिसे मेरी फिक्र थी,जो मुझे एक अच्छा इंसान बनते हुए देखना चाहती थी ...





शायद यह सब तो मेरे साथ,अपने स्वार्थ के लिए थे... यह मैं जानता था,लेकिन रूपया, नशा ,लड़की इन सबने मुझे पूरी तरह अंधा कर दिया था,एक साधारण व्यक्ति अपने पूरे जीवन मैं कमाता होगा,इतना तो मैं छोटी सी उम्र मै कमा चुका था... सच तो यह था । मुझे किसी के शरीर की जरूरत नहीं थी।








मैं अपने लिए सुकून ढूंढ रहा था,प्यार ढूंढ रहा था,मैं सिर्फ प्यार चाहता था,जो मुझे अपने सीने से लगा सके और पूछ सके...मैं क्या चाहता हूं.... और यह सब छोड़कर एक नई ज़िंदगी शुरू कर सकूं, मुझसे यही पूछने वाला कोई नहीं था... एक वही थी जो मुझसे पूछती थी ... मैं क्या चाहता हूं...जो कहती थी,



एक वक्त खा लेंगे और खुशी से रहेंगे जिसके पास आते ही,मैं अपना हर दुःख, दर्द भूल जाता था,उसके पास होने से, मैं एक फूल की तरह खिल उठता था,उसे सीने से लगाने पर मुझे दुनिया की हर खुशी मिल जाती थी,जब बह बहुत करीब होती तो, मैं दुनिया का बड़े से बड़ा युद्ध जीतने की शक्ति रखता था,










वह मेरे साथ होती तो, वह मेरे लिए पूरा संसार होती थी,उसके सिवाय मुझे संसार की किसी भी वस्तु की जरूरत नहीं होती,उसके साथ होने से मुझे यही लगता था,दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति मेरे साथ खड़ी है,मेरे सामने आने वाली हर मुसीबत के सामने,वह चट्टान बन कर खड़ी हो जाती थी,मेरे लिए खुशी ढूंढते ढूंढते वह अपने आपको भूल गई थी,







वह मेरे लिए,वो पुर्णिमा की रोशनी थी,जो अमावस के काले से काले अंधेरे को पलक झपकते ही रोशनी में तब्दील कर दे... कोई मां अपने बच्चे को लेकर तूफ़ान में फंस जाए,तो उस बच्चे को तूफ़ान से बचाने के लिए, वह मां अपने बच्चे को आंचल मै छुपा लेती है,और खुद उस तूफ़ान का से लड़ जाती है,लेकिन वह अपने बच्चे पर एक भी खरोंच नहीं आने देती...










वह मेरे लिए उस मां के आंचल की तरह थी जो मेरे सामने आने वाली हर समस्या से ख़ुद लड़ती थी, लेकिन मुझे खरोंच तक नहीं आने देती थी... चाहे अंधेरा कितना भी हो ...उस अंधेरे को एक छोटा सा दीपक अपनी लो से काट ही देता है यही हकीकत है ।








कोई काला धंधा जब ज्यादा बढ़ता है तो उसे कोई ताकत ज़रूर रोकती है । वही हमारे साथ हुआ ... जिस काम के लिए आज हम एक नए शहर मैं पहुंचे थे,वहां पुलिस हमारे इंतजार मै खड़ी थी... हम लोगों ने जैसे ही काम खत्म किया,वहीं पुलिस ने सभी को धर दबोच लिया था समझोता करने की बहुत कोशिश की गई लेकिन इस बार कामयाबी नहीं मिली ।








अब तक अपने आपको को शहर का बाप समझने वाले,एक तोते की तरह पुलिस के पिंजरे में था अब कोई रास्ता नहीं था । पीने को बहुत मन हो रहा था, साहब वर्षों का नशा था तो इतना जल्दी कहां उतरता है ,तो वर्दी वाले को लाने के लिए कहा, तो उस वर्दी वाले ने शाम के लिए इशारा किया । किसी से अब कोई संपर्क नहीं हो रहा था...






हम सभी के मोबाईल फोन जब्त हो गए थे, हम सभी एक साथ अंधेरी कोठरी में बैठे थे.. वहां गंध आ रही थी... वर्षों के बाद आज ऐसा लग रहा था,जैसे मैं अभी नींद से जागा हुं... तभी दरवाजा खुला और दरवाज़ा खुलते ही शरीर पर पट्टे वितरित होना शुरू हो चुके थे उस कोतवाली मैं शायद ही,








कोई ऐसा वर्दी वाला रहा होगा,जिसने हमें अपनी सेवा न दी हो यह सब चलते चलते आधी रात हो चुकी थी साला हमेशा दवाई से गला तर रहता था लेकिन आज तो पानी भी नसीब नहीं हो रहा था शरीर में जितनी हड्डी नहीं थी, उससे ज्यादा शरीर पर सरकारी ठप्पे लग चूके थे । ऐसी कोई जगह नहीं थी ...








जो कसक न रही हो यह पहला एहसास था,शरीर में इतना मीठा दर्द भी होता है... हम सभी की एक दूसरे को देखकर थोड़ा हिम्मत बढ़ रही थी... मेरी उम्र उन सब मैं कम थी... लेकिन बॉस तो बॉस ही होता है, वैसे भी मुझे बॉस बनने का शौक था,तो खातिरदारी मैं वर्दी वालों ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी,









मुझे पता तो था,अपने धंधे में एक दिन ऐसा आएगा,लेकिन इतना जल्दी आएगा...यह नहीं पता था वैसे मैंने ईश्वर को कभी दोष नहीं दिया मैंने कहीं पढ़ा था...जैसे कर्म करोगे उसी तरह का फल भी मिलता है, तो ऐसा लगा ईश्वर जल्दी खुश हो गए... सुबह हो गई थी... वर्दी वाले ने उठने को बोला, अब जैसे ही खड़े हुए तो पैर साथ नहीं दे रहे थे, उसने डांटकर फिर से कहा एक बार क्रोध आया... एक चपाट लगाऊं,












अब हाथ भी नहीं उठ रहा था, अपाहिजों की तरह मुझे दूसरे कमरा मैं ले जाया गया, वहां कोई बड़ा अधिकारी आया था, अब मैं उसके सामने जाके ही बैठा था, उसने एक दीया धरकर गाल पर, साला आंखों के सामने अंधेरा छा गया, कानों मै अजीब से आवाज़ गूजने लगी थी,उसने कहा तेरी उम्र का मेरा बैठा है, कितने का है बीस,





इक्कीस,ज़बाब था,बीस साल कुछ महीने उसने मेरे परिवार और कारनामों के बारे मै पूछा मेरी ख्वाहिश पूछी, मैं तो विज्ञान का विधार्थी था,लेकिन मेरा बदला अभी पूरा नहीं हुआ था, जिसके लिए मैं यहां तक सफर तय कर चुका था, वर्दी वालों ने हम सभी के चेहरे कपड़े से ढक दिए थे, कुछ समय के बाद वर्दी वाले हम सभी को एक गुमनाम जगह पर ले गए,अब हमें खुद नहीं पता था ।











हम हैं कहां...जहां भी ले जाते वहां अंधेरा ही होता था... अब तो यह भी पता नहीं लग पा रहा था,कब दिन होता है, और रात... भूख और प्यास से हालत खराब हो रही थी... खातिरदारी भी जमकर हो रही थी,पहली बार ससुराल में दूल्हे की भी इतनी अच्छी खातिरदारी नहीं होती होगी,जो हमारी हो रही थी, अब हमें सब याद आ रहे थे...




अलका को याद करता तो थोड़ी हिम्मत बढ़ जाती थी ...वैसे मैं अब एक बार अलका से मिलना चाहता था... उसके बिना,मेरी ज़िंदगी ताश के पत्तों की तरह बिखर गई थी, एक वही थी जो मुझे और मेरी ज़िंदगी को समेट सकती थी, मैं एक बार उसे अपने सीने से लगाने को तड़प रहा था शायद यही तड़प थी, जो मुझे एक बार फिर से खड़े होने की हिम्मत दे रही थी,लेकिन यह भी सच था,









मैं इतना भयभीत हो चुका था,मुझे हर चीज़ से डर लगने लगा था, यहां तक अपने आप से, आंखे पत्थर की तरह हो गई थी, न खुलती थी,और न बंद होती थी,उस अंधेरे में, मैं जोर जोर से चीखता था...




शायद कोई मेरी आवाज़ सुने... वह मुझ पर विश्वास करती थी,वह मेरे सपनों को पूरा करने के लिए अपने आप को भूल गई थी,लेकिन मैं भी उसके सपनों को पूरा होते हुए देखना चाहता था,उसे अपने सीने से लगाता तो ऐसा लगता दुनिया की सारी खुशी मिल गईं, उसके डांटने में मुझे जो खुशी मिलती थी ,







वह दुनिया के किसी बाज़ार में नहीं मिल सकती, उसकी गोद में सिर रखना,करीब आने पर एक दुसरे की धड़कन को सुनना और जोर जोर से पागलों की तरह हंसना,जब वह गुस्सा होती, तो उसे एक छोटे से बच्चे की तरह मनाना, वैसे प्यार मैं कोई शर्त नहीं होती है, जहां कुछ मांगा नहीं जाता है,सिर्फ दिया जाता,










बिना प्यार के इंसान बस एक शरीर है, जैसे बिना देवता के मंदिर होता है,और जहां प्यार है तो वह एक खूबसूरत मंदिर है,वैसे प्यार मैं कोई छोटा बड़ा नहीं होता है,प्यार जब कुछ देता है तो वह खुश हो जाता है,प्यार जब बरसता है तो वह सम्राट बन जाता है, हवाएं सनसनाती है और प्यार के गीत गुनगनाती हैं,प्यार प्रतिक्षा करता है,









प्रतिक्षा में जितना भी समय जाता है,और प्यार उतना ही गहरा होता जाता है, अब ऐसा लगने लगा था... जैसे अब कभी हम सूर्य को रोशनी देख नहीं पाएंगे,हम सभी पर दवाब था,जो काम हमने किए ही नहीं,उनको भी स्वीकर करना, इसके लिए और अच्छी खातिरदारी हो रही थी, अब सही से आखें भी नहीं खुलती थी, पैर भी साथ छोड़ चूके थे, वैसे हम जो भी धंधा करते थे,











उसमें हमने कभी किसी का खून तो नहीं बहाया था,लेकिन हमारे शरीर में से जरूर खून बह चुका था, वर्दी वालों ने हमारे साथ जो भी किया ,लेकिन वह हमारे आत्मविश्वास हिला नहीं पाए... पहली बार किसी ने आज मेरी मां को गाली दी थी, मैं दर्द से तड़प रहा था,हिम्मत करके मैं खड़ा हुआ था, मेरे हाथ पैर हिल नहीं पा रहे थे लेकिन मेरा सिर हिल रहा था,










वही दीया धर के, वर्दी वाला दीवार से जाके लगा था,उसके मुंह नाक से खून आ गया था,यह सब देखते ही वहां कुछ और वर्दी वाले आ गए थे, उन्होंने मेरे हाथ और तीन उंगलियो को तोड़ दिया था, अब यह लग रहा था , मैं ज़िंदा कैसे हूं,एक ग्लास पानी नहीं उठा पा रहा था, वर्दी वाले जितनी भी यातना दे सकते थे, उन्होंने हमें दी, अंधेरी कोठरी में बैठे आज मैं यही सोच रहा था मैं कितना लाचार और बेबस हो गया हूं, जिस मेला में , मैं शामिल था,













वहां कोई अलका नहीं थी, और उस मेले में अलका को ढूंढते ढूंढते मैं खुद कहीं गुम हो गया था, मैंने बहुत यतन किए, लेकीन मैं उसे भुला नहीं पा रहा था...जैसे जैसे समय निकल रहा था उतना ही समुंद्र की गहराई में जाता जा रहा था जिसका मुझे कोई छोर दिखाई नहीं दे रहा था







आज हम सभी को पुलिस के एक बड़े अधिकारी के सामने ले जाया गया, और हमारे सामने एक नई मांग रखी गई थी, इस बात को वह भी समझ चुके थे, उन्होंने जो गुनाह स्वीकार करने को कहा था,वह हम सभी मैं किसी ने स्वीकार नहीं किया था, अब तक हमने जो भी अपने धंधे में कमाया था,वह सब उनको देना था,वैसे भी हमारे सामने कोई और विकल्प नहीं था, बिना देर किए हम सभी ने अपनी स्वीकृति दे दी थी...











हम सभी को रात के समय एक जंगल में छोड़ दिया गया था,सभी ने गहरी सांस ली थी... उस समय कोई इंसान क्या महसूस कर सकता है,यह शब्दों में व्यक्त करना मुश्किल होता है हम सभी सुबह का इंतजार कर रहे थे,












सुबह होते ही सभी अपने अपने रास्ते पर निकल गए थे,और मैं एक नए शहर के लिए निकल पड़ा था... शहर पहुंचते ही मैं एक अस्पताल में दाखिला ले चुका था, डाक्टर ने मेरे हाथ और उंगलियों पर प्लास्टर कर दिया था,मेरा शरीर कमजोर हो गया था,तो कुछ दिन मुझे अस्पताल में रहना के लिए कहा गया था...
अब आगे....

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