अलका:- A story by Anant saraswat

"अलका"
क्या जो प्यार हमें ज़िंदगी देता है... वक्त आने पर वह हमसे हमारी ज़िंदगी छीन लेता है... ज़िंदगी जो भी ज़ख्म दे...जीना तो हर हाल में होता है...वैसे तो इस दुनियां मै हर रोज़ न जाने कितने लोग एक दुसरे के हो जाते हैं...कितने लोग एक दुसरे से अलग होते हैं...








और कुछ नए रास्ते पर चले जाते हैं...हज़ारों और लाखों लोगों के बीच कुछ हमारे जैसे लोग भी होते हैं...जो न तो एक दुसरे से दूर होते हैं और न ही पास होते हैं...एक हॉस्पिटल मै भर्ती(admit) होता तो दूसरा भी हॉस्पिटल चला जाता था...














हजारों किलोमीटर दूर रहने पर एक दुसरे का अहसास ही शायद उनकी ताकत थी... लाख कोशिश के बाद भी वह एक दूसरे को भूल नहीं पा रहे थे...सच कहूं तो यह दो पागल की कहानी है...आज के दौर मै ऐसी कहानी पर विश्वास करना थोड़ा मुश्किल होता है...




















आज हम लगभग तीन सालों के बाद मिल रहे थे...अचानक ही उसका मैसेज आया तो जब तक मैं थोड़ी सी पी चुका था...उसे मेरे पीने से नफ़रत थी...पिछले तीन वर्षों मै एक भी दिन ऐसा नहीं था..जो मैंने उसे याद न किया हो...या उसने मुझे याद न किया हो...पीने के बाद थोड़ा अपने आप को संभालने का मौका मिलता था...मुझे ऐसा लगता था...




















इसलिए पी लेता था...उसे पूरा यकींन था कि मैं पीना छोड़ चुका हु... लेकीन ऐसा नहीं था... मैं हर सुबह से जब तक पीता था...जब तक सो न जाऊ...रात का बना पैग सुबह पीकर जागता था... ऐसी मेरी हालत थी...मैंने उसके विश्वास को तोड़ दिया था...आज उसके आने की खुशी थी और उसके आते ही मैंने उसे ताने मार मारकर परेशान कर दिया था...























तीन वर्षों की भड़ास जो निकाल रहा था...कहूं तो उसे रूला लिया था...अब तक मैंने उसकी एक भी बात सुनी नहीं थी...वो मेरी बकवास सुने जा रही थी... सच तो ये था... आज भी वो मुझे बेहद प्यार करती थी...इसलिए मेरे जैसे इंसान के हाल चाल जानना चाहती थी...वो मुझे मिस्टर परफेक्ट बनते हुए देखना चाहती थी...बस इतनी सी ख्वाहिश थी उसकी...























हम दो जिस्म एक जान थे...वो मुझ से ज्यादा पढ़ी लिखी है शायद मैं उसके लायक न हो...वो बड़े घर की लड़की है...समाज मै उसका ज्यादा सम्मान है और कभी कभी घमंडी भी लगती थी...ऐसे विचार मेरे मन में उसके प्रति थे...





















तीन वर्ष पहले जब हम अलग हुए तो वह अपना घर छोड़कर कर किसी बड़े शहर मै रहने लगी थी और वहीं रहकर किसी कंपनी मै नोकरी करने लगी थी...दरअसल वो इस हादसे से उभरकर एक नई शुरूआत करना चाहती थी...












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खुश मिजाज़ स्वभाव और दूसरों की मदद करना उसे बेहद पसंद था...पूर्णिमा के चांद की तरह खूबसूरत और उसके चेहरे पर छोटे छोटे दाने सितारों का काम करते थे...वो मासूम सी लड़की आज बेहद अकेली थी...बच्चे के लिए पिता उस साये की तरह होता है...जो निहत्था और बूढ़ा होकर भी किसी आदमखोर का गला घोंटने की हिम्मत रखता है...




















हमारी बातें बंद हो चुकी थी.. दिल में चुभन दुख दर्द सब था फिर भी चेहरे खिले हुए थे... शायद समाज के लिए(जहां हम रहते हैं)... इन दिनों वो अपने दोस्तों के साथ रहती थी... परिवार से नाता टूट चुका था...कुछ समय बाद उसकी तबीयत ख़राब रहने लगी...उसका मन हुआ करता तो घंटो रो लिया करती थी...उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था...
















उसकी सुनने वाला आज कोई नहीं था... (जो सुनने वाले यानि परिवार)एक समय ऐसा हुआ करता था...जब पूरा परिवार उसके लिए जान छिड़कता था...उसका कारण मैं ही था...(आज वो अपने घर और परिवार से दूर थी)इस प्यार के खातिर आज वो अकेली रह कर कई तरह की लड़ाई लड़ रही थी...मैं भी उसका साथ नहीं दे सका था...















जब मुझे उसकी जरूरत होती तो हमेशा मेरे साथ खड़ी होती थी...मेरे लिये कोई एक शब्द तो कह दे...शेरनी की तरह उसको फाड़ डाले...इतना गुस्से वाली भी थी... पिछले दो सालों से वह घर नहीं गई...उसके भी कुछ सपने थे...कॉलेज मै हमेशा अव्वल आने वाली वो भोली भाली सी लड़की अपने पिता के पास जाना चाहती थी... वह पूरी तरह टूट चुकी थी...




















वो गंगा जल की तरह पवित्र और नेक दिल वाली मेरी जान थी...शायद मुझे प्यार करना ही उसकी सबसे बड़ी भूल थी...यही उसका कसूर था...वो अपने पिता के पास पहुंची तो उसके पिता ने शहर के अच्छे से अच्छे डॉक्टर से संपर्क किया...इतना समय निकलने के बाद अभी भी उसके स्वास्थ मैं कोई सुधार नहीं था...उसके सारे चेक अप हो चूके थे...
















अगली सुबह उसकी रिर्पोट के इंतजार मै परिवार वाले टक टकी लगाए बैठे थे...वो किसी छोटी बच्ची की तरह उछल कूद कर रही थी...उसे यह भी नहीं पता था... जो उसकी रिपोर्ट आई है...उसके दिल मै छेद है...इस बात से अंजान वो मासूम सी लड़की अपने पिता के पास पहुंची तो उसके पिता की आखें भर आई...वह उसे कुछ बता भी नहीं सकते थे...




















अब डॉक्टर को उसका ऑपरेशन करना था... यह सब बैठे मैं सुन रहा था और मेरे पास कोई शब्द नहीं था....मेरी पी हुई उतर चुकी थी...सच तो यह था इतना सब होने पर उसे अभी भी मेरी चिंता थी...वह मेरे हर दिन के बारे मै जानती थी और अपनी लड़ाई खुद लड़ रही थी...















यही मेरी सजा थी..लेकिन इन सब से मैं अंजान था... वो मेरे लिए किसी देवी कम नहीं थी...वह हर रोज़ अपने ईश्वर से मेरी कामयाबी के लिए प्रार्थना करती थी...उसका ऑपरेशन हो चुका था...

अब आगे (पार्ट 2)...

अनंत सारस्वत
(लेखक सुप्रसिद्ध अभिनेता है)

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Keep it up bro   - Commented By - Great person with great personality.